मंजिल है शायद दूर कही,
कांटे हों चाहे कितने ही सही,
पर जब पैर रखा इन् अंगारों पर,
तो इस अग्निपथ पर तो जाना ही है,
मुझे तो अपने लक्ष्य को पाना ही है.....!
रास्ता है थोड़ा कठिन लेकिन,
मुझे तो चलते जाना है,
अपनी चोटी सी कश्ती को,
इस अमित अथाह सागर में,
बस आगे ही बढाते जाना है, क्योंकि.....
क्योंकि मैं जानता हूँ की,
मन मैं है विश्वास अगर,
अगर हों दृढ़ निश्चय का साथ,
तो एक न एक दिन
मंजिल को हाथ आना ही है
अब वक्त चाहे रुक जाए, हवा चाहे मूढ़ जाए,
मुझे तो आगे जाना ही है,
मुझे तो अपने लक्ष्य को पाना ही है.....!
थक जाऊं भले ही पथ मैं,
लेकिन जोश नही थकने दूंगा,
मर मिटूंगा ख़ुद भले ही,
पर लक्ष्य को ना मिटने दूंगा, क्योंकि.....
क्योंकि इस जिन्दगी मैं जो अपने है,
जिनके लिए मेरे सपने हैं,
उनके लिए कुछ कर दिखाना ही है,
मुझे उन सपनों की दुनिया मैं जाना ही है.....
बस अब कुछ भी हों जाए...
चाहे धरती रुक जाए
या अम्बर झुक जाए,
मुझे तो अपने लक्ष्य को पाना ही है,
मुझे तो अपने लक्ष्य को पाना ही है........!!
Saturday, October 31, 2009
आत्मचिंतन....
जिंदगी के इस मोड़ ने कहाँ ला खड़ा किया,

मेरे प्यारे से सपनों को इक पल मैं यूँ बहला दिया,
जिस तरफ़ से जा रहे थे उस तरफ़ से रुख मुड गया,
मेरा वो प्यारा सा सपना ना जाने कहा गुम गया.....
खोजा उसे कहाँ कहाँ नही,
खोजा उसे कहाँ कहाँ नही......
पर वो खोज नाकाफी थी,
सोचा मैंने शायद कही ये,
मेरी आपाधापी थी......
शिद्दत से संजोये उन ख्वाबों की,
मुझसे ये बेईमानी थी,
उनको भला क्यों मुझसे,
ऐसी कुछ परेशानी थी.........
अब इस बंज़र मैं फिर से हरियाली लानी होगी,
अब इस बंज़र मैं फिर से हरियाली लानी होगी......
नन्हे मुन्ने ख्वाबों की एक नई दुनिया सजानी होगी,
जो समय रहते बड़े होंगे, फल फूल से लदे होंगे,
उन्हें लेकर चलने के लिए इक नई डलियाँ सजानी होगी,
इक नई डलियाँ सजानी होगी......!!
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