मंजिल है शायद दूर कही,
कांटे हों चाहे कितने ही सही,
पर जब पैर रखा इन् अंगारों पर,
तो इस अग्निपथ पर तो जाना ही है,
मुझे तो अपने लक्ष्य को पाना ही है.....!
रास्ता है थोड़ा कठिन लेकिन,
मुझे तो चलते जाना है,
अपनी चोटी सी कश्ती को,
इस अमित अथाह सागर में,
बस आगे ही बढाते जाना है, क्योंकि.....
क्योंकि मैं जानता हूँ की,
मन मैं है विश्वास अगर,
अगर हों दृढ़ निश्चय का साथ,
तो एक न एक दिन
मंजिल को हाथ आना ही है
अब वक्त चाहे रुक जाए, हवा चाहे मूढ़ जाए,
मुझे तो आगे जाना ही है,
मुझे तो अपने लक्ष्य को पाना ही है.....!
थक जाऊं भले ही पथ मैं,
लेकिन जोश नही थकने दूंगा,
मर मिटूंगा ख़ुद भले ही,
पर लक्ष्य को ना मिटने दूंगा, क्योंकि.....
क्योंकि इस जिन्दगी मैं जो अपने है,
जिनके लिए मेरे सपने हैं,
उनके लिए कुछ कर दिखाना ही है,
मुझे उन सपनों की दुनिया मैं जाना ही है.....
बस अब कुछ भी हों जाए...
चाहे धरती रुक जाए
या अम्बर झुक जाए,
मुझे तो अपने लक्ष्य को पाना ही है,
मुझे तो अपने लक्ष्य को पाना ही है........!!
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aap apne lakshay ko zaroor payoge...
ReplyDeletekarte rahiye aise hi mehnat...
ek din manzil tak pahunch hi jaoge..
bahut achhi thots hain.. gud yaar...
you are a great poet...
keep it up :)
Very well composed...Keep up d spirits!!
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