Monday, November 2, 2009

अंश....

ये सच है की वक्त किसी का नही है सानी,
सुख दुःख..अच्छा बुरा,
सभी ने उसकी है मानी,
फिर भी अपनी ओझल आखों से
वक्त का थामे दामन,
आने वाले सुख मैं....
क्यों देख रहा हूँ मैं अपना 'अंश...' ?

वो नज़रों मैं टिमटिमाती
आखों मैं चमकते तारे के समान झिलमिलाती,
सोहाद्रता के आँगन मैं अपने,
पल पल साथ होने का एहसास दिलाती वो.....

सोचता हूँ
अगर पल भर की है दुनिया संग उसके,
तो उस झिलमिलाती आखों मैं
एक सच्चे दूरदर्शक की भांति,
क्यों देख रहा हूँ मैं अपना 'अंश....' ?

वृहदाकार वृक्षों के बीच,
खिल रहा है एक नन्हा पौधा,
पौधा , जो जूझ रहा है
इन अनजानी हवाओं मैं,
इन झोकों से लहराती नन्ही पत्तियां
जाने है उनके कहर को,
लेकिन दृढ़ विश्वास से स्थूल हो,
अडिग है अपने पथ पर.....

उन विशाल वृक्षों के बीच
उस नन्हे पौधे मैं फिर भी,
क्यों पा रहा हूँ मैं अपना 'अंश...' ?
क्यों देख रहा हूँ मैं अपना 'अंश....'?
क्यों.....??



1 comment:

  1. well.... it is gud... if u r "dekhing" your "ansh" in "aane wala sukh"... :)

    it is also gud if u r "adig" in your "path" :)

    and in ur last lines... you are "dekhing" and "paaing" your "ansh.." in "vishal vraksha" and in "nanhe paudhe" ...

    nice yaar :)

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